पचास साल पहले यह
किसी ने सोचा भी नहीं था कि आज पृथ्वी पर जिन देशो को इस्लामी देशो के नाम से जाना
जाता था उनकी तस्वीर जादुई ढंग से ऐसी बदल जायेगी. ९/११ को अमेरिका पर कुछ दहशत
गर्दो की कार्यवाही मानव इतिहास में उस मील के पत्थर की तरह लिखी इबारत है जिसने
दुनिया को इस्लामी और गैर इस्लामी नज़रिए में बाँट दिया, इस सियासी और मज़हबी नफरत
का अंजाम दुनिया के इसी हिस्से को दूसरी बड़ी लड़ाई के बाद ठीक ऐसा ही भुगतना पड़ा
जैसे यूरोप को भुगतना पड़ा था. महायुद्ध के बाद पूरे यूरोप का नए सिरे से विकास पिछली
शताब्दी में हुआ ठीक वैसे ही तेहरान, दमिश्क, इस्राईल, बहरीन, काहिरा, क़तर, दुबई, आबुधाबी,
रियाध, जेद्दाह, दिल्ली, मुंबई, कराची, इस्लामाबाद, लाहौर, ढाका, काबुल, कंधार आदि
शहर पृथ्वी के नक़्शे से लगभग गायब होकर दोबारा इतिहास की गति में पूरे वेग के साथ
शामिल हो चुके है. युद्ध में अपार जनक्षति और संपत्ति के नुकसान के बाद इतिहास न
केवल पुनर्निर्माण करता है बल्कि अपने नज़रिए अपनी सोच अपने मज़हब अपने दर्शन और
तहज़ीब को भी झाड़ पोंछ कर उसे इंसान के जीने लायक बनाता है. ऐसा ही दूसरी लड़ाई के
बाद हुआ था और ऐसा ही पिछली बड़ी लड़ाई के बाद हुआ. पिछले तीस बरसों में पृथ्वी के
इस हिस्से ने जितना विकास किया वह मानवजाति के इतिहास में पहली बार हुआ है. विश्व
व्यापार में मुंबई, दुबई, तेहरान, रियाध, हाइफा, काहिरा की मौजूदा उपस्थिति उनकी
सुदृढ़ आर्थिक स्थिति को भलिभांति चिन्हित करती है.
पचास वर्ष पूर्व
हुए महा संहारक युद्ध में मुसलमानों की अपार जन क्षति के बाद, जिसमे उनकी आबादी की संख्या लगभग आधी रह गयी थी, उसके संकल्प को उनके
जन-प्रतिनिधियों के जुझारूपन, गतिशीलता और मौलिक दूरदर्शिता के माध्यम से समझा जा
सकता है. इन्ही जन नेताओं के नेतृत्व में दुनिया के इतिहास में ऐसी मिसाल दूसरी
नहीं मिलती जिसने इतने थोड़े समय में विज्ञान और तकनीक के विकास में न केवल भौतिक
प्रगति की हो बल्कि अपने पूरे समुदाय के विकास में विज्ञान का प्रयोग कर सर्वोच्च
वैज्ञानिक समुदाय के बतौर खुद को स्थापित किया हो.
क्या आज से पचास
साल पहले कोई यह कल्पना कर सकता था कि उनके धार्मिक ग्रन्थ से उन तमाम बातों को
निकाल दिया जाएगा जिनमे हिंसा को किसी ने किसी तरह से जायज़ कहा जाता रहा और
सर्वश्रेष्ठ वादी दर्शन को स्थापित करने की कोशिशे की जाती रही, जिनके जरिये
इस्लाम को दुनिया में फतह का झंडा फहराने की बशारतें की गयी थी, जिनके द्वारा किसी
व्यक्ति को दुनिया का अंतिम पैगम्बर घोषित किया जाता रहा और उसकी किताब को दुनिया
की अंतिम किताब १५०० सालों तक माना जाता रहा. जिनके कारण परजीवी मुल्लाह जमात
सदियों पर इस्लाम के नाम पर अवाम में ज़हर घोलती रही. युद्ध के उपरांत मुस्लिम
समुदाय ने जितनी परिपक्वता के साथ अपने धर्म की आत्मआलोचना कर उसका शुद्धीकरण किया
है ऐसी दूसरी मिसाल मानव जाति के इतिहास में उपलब्ध नहीं. आज से पचास साल पहले तक
लगभग १५०० वर्षो तक इस्लामी दुनिया में शिया-सुन्नी के प्रश्न पर लाखों इंसानों की
जान गंवाने वाले इस समुदाय में शिया-सुन्नी का विवाद जिस तरह इतिहासकारों, न्यायविदो,
वैज्ञानिकों, मानवशास्त्रियों, समाजविज्ञानियो के ट्राई ब्युनल द्वारा हज़रत अली, इमाम हुसैन आदि के हत्यारों पर मृत्युपरांत मुक़दमा चला कर
फांसी की सजाये देकर सुलझाया गया है वह
हमारे युग का एक अद्वितीय उदहारण है. आज पूरे पूर्व इस्लामी देशो में शिया सुन्नी
का नाम लेना कानूनी जुर्म है ठीक वैसा ही जुर्म है जैसा दूसरी लड़ाई के बाद जर्मनी
में हिटलर का नाम लेना था. पिछले पचास वर्षो में १५०० साल पुरानी ऐतिहासिक विसंगतियों को सुधारने के लिए जिस
आवेशपूर्ण सजगता और दूत्र गति की आवश्यकता थी वह मौजूदा नेतृत्त्व ने सफलतापूर्वक
कर दिखाया है.
डेमोक्रेटिक
रिपब्लिक आफ़ सऊदी अरब के वर्तमान शासक दुनिया के पहले ऐसे शासक है जिनका प्रतिदिन
आठ घंटे की कार्यवाही देश की जनता के समक्ष सीधा प्रसारण होता है, क्या कोई इस बात
पर आज से ५० साल पहले यकीन कर सकता था कि सऊदी अरब में राजशाही थी और मौजूदा शासक
के पूर्वज अपनी अय्याशियो के लिए पूरी दुनिया में बदनाम थे. सालाना हज को जिस तरह
उनके नेतृत्व में जिस प्रकार आयोजित किया जाता है वह अपने आप में एक अजूबा है. आज
से पचास साल पहले हज की यात्रा कोई भी पैसे वाला कर सकता था उसके पास धन होना
पूर्व शर्त थी और वही पूर्व योग्यता लेकिन आज विज्ञान का उपयोग करके दुनिया भर के
मुसलमानों ने हज यात्रा को जिस तरह संयोजित किया है वह लाजवाब है. हज के दौरान अब
शैतान को पत्थर मारने वाली प्रथा गुजरे ज़माने की बात हो चुकी. उसकी जगह उस सुपर
कंप्यूटर हाल ने ली है जिसमे घुसने के बाद इंसान के अन्दर चल रहे द्वन्द, अंदरूनी
गंदगी, ज़हनी विकार उसे खुद नज़र आते है. इंसान का अतीत उसके सामने आकर न्रत्य करता
है उसे अपनी बदियाँ खुद नज़र आती है जिसकी वह रो-रो कर क्षमा याचना करता है और उससे
बाहर निकल कर उसे ऐसा महसूस होता है जैसे उसके मस्तिक्ष की काया पलट गयी हो, वह
नया इंसान बन कर अपने घर वापस लौटता है. इस वर्ष पूरी दुनिया से ५६,००० लोगो ने हज
यात्रा की जिसमे से ७८९ को एयर पोर्ट से ही वापस किया गया और लगभग १२०० हज यात्रियों
को हज के दौरान शक्तिशाली सेंसरो ने उनकी ज़हनी अपवित्रता को पकड़ा परिणामस्वरूप
उन्हें हज यात्रा पूरे किये बिना वापस जाना पड़ा. दंड में वसूली गयी और हज यात्रा
से होने वाली आमदनी को सऊदी शासक से अफ्रीकी देश मोजाम्बिक को दान कर दी गयी.
पिछले २५ सालों से हज की आमदनी से गरीब देशो को दान देने की प्रथा के बारे में
क्या पहले कोई सोच सकता था? इंसान के अन्दर झाँक कर देखने वाले इन सुपर कंप्यूटर्स
का विकास तेहरान और काहिरा में किया गया है जो अपनी किस्म के पहले कंप्यूटर है.
हज करने का
अधिकार किसे है? यहाँ इसे बताना जरुरी है. पूरी दुनिया की मस्जिदों में अब पचास
साल पहले जैसे फाहशी दिखावे भरी भीड़ नहीं होती. मुसलमानों की घड़ी में विशेष प्रकार
की चिप लगाई गयी है. धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति किसी भी मस्जिद में जाकर
इमाम से यह चिप अपनी घड़ी में डलवा सकता है. इमाम को खुद पता चल जाता है कि उसका
आवेदक नमाज पढ़ रहा है या नहीं. मस्जिद आने की अनिवार्यता समाप्त हो चुकी है. इमाम
के खुतबो में राजाओं के स्तुतिगान और राजनैतिक ब्यान बाजियां सर्वथा समाप्त हो
चुकी है, अभी किसी के पैदा होते ही नव जात शिशु के कानो में जबरन अज़ान देकर
मुसलमान बनाने के धंधा बंद हो चुका है. किसी को इस्लाम धर्म में अगर आस्था जगती है
तब उसे दो गवाहों के साथ मस्जिद में जाकर आवेदन करना होता है जिसके बदले में इमाम
उसे चिप देता है और दर्स भी. इस्लाम को मानने वालो का हिसाब किताब इस चिप के माध्यम
से इमाम के कंप्यूटर में दर्ज होता रहता है, मस्जिद में की गयी हाजरी, बिताया गया
समय,दी जाने वाली ज़कात और चंदे जैसी बातो से एक नमाजी की क्रेडिट रेटिंग बनती है
जिसके इस स्तर पर पहुचने के बाद ही वह हज की यात्रा करने के योग्य होता है.
मुस्लिम समुदाय ऐसे हज यात्रियों के आने जाने का खर्च स्वयं वहन करता है इस प्रकार
हज वही व्यक्ति जा सकता है जिसकी अपनी धार्मिक योग्यता हो और साथ साथ समुदाय उस पर
यह यकीन करे कि उसके हज से समाज को भी लाभ होगा. मुल्लाह नाम के जीवो से जब से
मस्जिदें मुक्त हुई है तभी से यह बदलाव बड़ी लडाई के बाद से लागू हो चुके है. नमाज
पढ़ाने वाले लोग आमतौर पर पेशेवर होते है जो अपनी आजीविका के लिए मस्जिदों पर
निर्भर नहीं करते. मुस्लिम समुदाय अपनी अपनी मस्जिदों के इमाम को एक सामुहिक
जिम्मेदारी में बदल चुके है जिसके कारण पूरे समुदाय में मौलिक गुणात्मक परिवर्तन
हो चुका है. विज्ञान और तकनीक के व्यापक उपयोग से अब हर व्यक्ति के धार्मिक
संस्कारों का लेखा जोखा मक्का स्थित इस्लामिक डेटा सेंटर में जमा रहता है. किसी
विवाद की स्थिती में मक्का के चीफ डेटा अधिकारी संबंधित व्यक्ति की रिपोर्ट देख कर
कोई निर्णय ले सकते है.
भारत, पाकिस्तान
और मध्यपूर्व जैसे देशो में रमजान के दिनों में इफ्तारी जैसे बेहूदा कार्यक्रम
मूढ़ता के इतिहास में दफ़न हो चुके है. भारत जैसे देश में अब सामुदायिक नेता भले ही
वह इस्लाम को मानने वाला हो या न हो अब सहरी के वक्त आकर अपने रमज़ान की शुरुआत
करता है और इस अवसर पर कोई न कोई प्रण अथवा प्रतिज्ञा लेता है. आमतौर पर समुदाय
अपने इलाके के गरीब और जरुरत मंदों की जिंदगी बेहतर बनाने, स्कूल कालिजो के
आधुनिकीकरण, अस्पतालों, सड़को और जन सेवाओं को समृद्ध बनाने की योजनायें बना कर फंड
इकठ्ठा करते जिसमे उनके जन प्रतिनिधी सरकार से और इमदाद लेकर उन योजनाओ को पूरा
करने में मदद करते. धार्मिक शिक्षा के लिए पचास साल पहले तक मशहूर मदरसों को बड़े
बड़े वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों में बदला जा चुका है जिसमे शिक्षा लेकर अब कोई
धार्मिक परजीवी दाढी वाला मुल्लाह बनने के बजाये कोई न कोई पेशेवर बन कर निकलता है.
विज्ञान के समुचित उपयोग करने से यह समुदाय दुनिया का सबसे बड़ा डेटा बेस्ड समुदाय
बन चुका है जिससे इनके नेतृत्व के पास वह तमाम सूचनाये उपलब्ध है जो इन्हें बताती
है कि उन्हें अपने समुदाय के लिए कब और क्या करना है.
मुस्लिम जगत के
प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय इमाम मेहदी पुरुस्कार की तारीफ़ किये बिना भला कैसे रहा
जा सकता है जिसने पिछले बीस बरस में अपनी प्रमाणिकता इतनी मज़बूती के साथ कायम की
है कि किसी ज़माने के नोबिल पुरूस्कार और उससे जुडी हस्तियों को बहुत पीछे छोड़ दिया
है. जैसा कि नाम से जाहिर है सदियों तक मुस्लिम समुदाय अपने उत्थान के लिए किसी
इमाम मेहदी की प्रतीक्षा में लगा रहा लेकिन मौजूदा परिवर्तन की लहर ने इमाम मेहदी
से जुडी परीकथाओ को मानव मुक्ति से जुड़े संघर्षो और मानव विकास के लिए किये गए
कार्यो को पहचान कर एक इंसान को ही हर साल ‘इमाम मेहदी’ बनाने का अंसभव कार्य किया
है. इस वर्ष यमन के युवा वैज्ञानिक ज़फर बिन सबा को चिकित्सा विज्ञान में किये गए
उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए इमाम आफ़ दि इयर ‘इमाम मेहदी’ पुरूस्कार दिया गया
है. ज़फर से सदियों से मानव जाति पर अपना प्रकोप बनाए ‘वायरस’ को भेद देने वाली दवा
का आविष्कार किया है.
इसी कुशल और
आधुनिक मूल्यों से संपन्न मुस्लिम नेताओं के चलते, दुनिया को लगभग १०० साल तक
कचोटती इस्राईल-फलस्तीन की समस्या भी ख़त्म कर ली गयी. धार्मिक आधारों और मुद्दों
को ताक पर रख कर आर्थिक सहयोग और परस्पर उन्नति के रास्ते पर चल कर दोनों देशो ने
परस्पर सहयोग और सांमजस्य स्थापित करते हुए एक दूसरे की संप्रभुता को स्वीकार
किया. धर्म के सार्वजनिक जीवन में प्रयोग पर लगी अपने आप रोक ने इस सदियों पुरानी
दुश्मनी को जड़ से मिटा दिया है. दोनों देशो को विभाजित करने वाली दीवारों को
गिराया जा चुका है. शांतिपूर्ण सहस्तित्व की यह नई मिसाल दुनिया को अपनी कहानी खुद
ब्यान करती है. निसंदेह तीसरी बड़ी लड़ाई के उपरान्त पैदा हुए नए विश्व ने न केवल
संयुक्त राष्ट्र संघ को भंग कर मौजूदा विश्व संसद को जो जगह दी है वह अब तक का
सबसे अच्छा प्रयोग साबित हुई है जिसमे कोई पांच देश ऐसे नहीं जिनके पास वीटो करने
जैसा जन विरोधी हथियार हो. अभी अंतर्राष्ट्रीय विवादों को विश्व संसद में बहस के
जरिये बहुमत के आधार पर फैसला करने जैसा अचूक अस्त्र प्राप्त है. विभिन्न देशो की
सरकारे विश्व संसद में किसी प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाएं इसके लिए प्रत्येक सरकार
अपने नागरिको से जनमत संग्रह कराती है फिर वही स्थिती विश्व संसद में रखती है.
तीसरी बड़ी लड़ाई
के बाद आये यह बदलाव मानवजाति को मुफ्त में नहीं मिले, इस स्थिति पर पहुँचने से
पूर्व उसे अपार जन धन और संपदा की आहूति देनी पडी...
......टी वी पर अलार्म
सेट था मुक़र्रर वक्त पर एक न्यूज़ चैनल पर
खबरे आने लगी. मुख्य समाचारो ने दिन की शुरुआत फिर अवसाद से भर दी. इराक
में एक धार्मिक समारोह पर तीन जगह हमला. खुद कश हमलावरों ने ३०० से अधिक जाने ली.
चित्र सौजन्य : गूगल
हस्तक्षेप डाट काम में प्रकाशित यह लेख इस लिंक पर उपलब्ध है:
http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/views/2013/07/24/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%8f%e0%a4%95-%e0%a4%a4%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a5%80%e0%a4%b0-2063-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%b9%e0%a5%88
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