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Sunday, May 12, 2013

इरान- सऊदी छाप न्याय व्यवस्था में पिसते खुद उनके नागरिक


जब मई २००६ की एक सुबह को इरान के २४ मछुआरे फारस की खाड़ी में मछली पकड़ने निकले थे, तब उन्हें नहीं मालूम था कि उनमे से कई लोगो का यह आख़िरी सफ़र है...समंदर का तूफ़ान उनकी किश्ती को सऊदी जल क्षेत्र में ले गया, नतीजतन उन्हें सऊदी सिपाहियों ने पकड़ लिया...कोई ४० दिन के बाद इनके परिवारों को पता चला कि ये लोग जेल में है और उन पर मादक पदार्थो की तस्करी का आरोप लगा है. इनमे से ८ की गर्दने १५ अप्रेल को सऊदी सरकार ने उड़ा दी १५ अभी जेल में है ..जिनके पास अपने बचाव का न कोई वकील है न दलील..पीछे बिलखते इनके परिवार है.
इरान और सऊदी दोनों इस्लाम के अलग-अलग ब्रांड के प्रायोजक है और दोनों मुल्को पर मानव अधिकार हनन के घृणित आरोप है. एक तीसरा पक्ष है एक देश का कैदी दुसरे देश में जाकर अपने सभी अधिकारों से वंचित हो जाता है. तीसरी दुनिया (भारत सहित) के इन देशो में जब भी ऐसी कोई घटना होती है तब ऐसे कैदी अक्सर सियासत की बिसात पर मासूम प्यादे बन जाते है, क्या ऐसी स्थिती में किसी तीसरे पक्ष 'होना' यहाँ अनिवार्य करना वक्त का तकाजा नहीं ?
इस वृत चित्र में पकडे गए मछुआरो में मुझे कोई भी तो तस्कर नहीं लगा? बिलखती बेटियाँ, रूंधे लडके, सदमे में तड़पते वालदायन  और उनकी गरीबी सऊदी अरब के कथित इस्लामी इन्साफ पर सहज ही प्रश्न चिह्न लगा देती है. धर्म के नाम पर दोनों मुल्को की सरकारों ने अपनी जनता के मौलिक अधिकारों का गला घोंट दिया है, इतिहास के इस पीड़ादायक निर्मम जुए को उतार फेंकना हर उस आदमी का फ़र्ज़ है जिसकी आँखे इस वृत चित्र को देख कर भर आये...ऐसी हकूमतो, ऐसी व्यवस्थाओं और ऐसे निजाम पर मैं लानत भेजता हूँ. 

http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=MQPSTEKe12Y