Showing posts with label Muslim Politics on Salman Rushdie. Show all posts
Showing posts with label Muslim Politics on Salman Rushdie. Show all posts

Tuesday, January 10, 2012

मुल्लाह-नेता और नागरिक स्वतंत्रता.......सलमान रुश्दी की भारत यात्रा का विरोध

सलमान रुश्दी को एक लेखक संघ में शिरकत करने के लिये राजस्थान आना था, कि दरुल उलूम के कर्ता-धर्ता मौलाना नोमानी ने उनकी भारत यात्रा पर प्रतिबंध लगाने के लिये, भारत सरकार से बजरिये मीडिया फ़रमाईश कर दी है. साथ ही साथ मुलायम के साथ लगा सियासी मुल्लाह आज़म खां ने भी बांग से बांग मिलायी. सब को पता है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं, नेता कैसे-कैसे हथकंडे अपना कर इन मुल्लाहों का इस्तेमाल करते और अपनी सियासी हांडी पकाते, इस फ़िराक़ में कि शायद सत्ता का सालन इस बार उनका ही होगा. हर चुनावों के पहले मुल्लाह-मौलवी पार्टी की जैसे बन ही जाती. कोई २८ बरस पूर्व लिखी रुश्दी की किताब "शैतानी आयतें" जिसे एक अन्य मुल्लाह (इमाम खुमैनी-इरान) ने बिना पढे़ ही इसके लेखक को मौत के घाट उतारने का फ़तवा दे दिया था. अब यह भारतीय जनतंत्र में फ़तवा देने का अधिकार, वह भी किसी व्यक्ति के नागरिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों को कुचलने का ठेका जैसे इन्हीं के हाथ में हो? ये अधिकार इन्हें कहां से प्राप्त हुये? कौन सा चुनाव लड़ कर ये मुसलमानों के बिहाफ़ पर एकाधिकार से बोलते हैं? अगर ये इतने ताकतवर है कि बाज़ारु नेता इनके तलवे चाटते फ़िरें तब ये मौलाना/दारुल उलूम ही अपना दल बना कर चुनाव क्यों नहीं लड़ लेते? ये इमाम बुखारी पुरानी दिल्ली से ही चुनाव क्यों नहीं जीत लेते?

जाहिर है, जहां धर्म का मसला हो तब शिखंडी नेता गणों की रीढ़ की हड्डी लकुवाग्रस्त हो जाती है, चंद वोटों के लालच में ज़ुबान सच के ज़ायके से महरुम हो जाती है और लोकतंत्र, उसकी मर्यादायें पडौस के आंगन में बच्चों की तरह खेलने चली जाती है. अशोक वाजपई, मौलाना वहीदुद्दीन खां जैसे लोगों ने नोमानी के बयान की आलोचना कर के हिम्मत का काम किया है, मैं उनके जज़्बे का एहतराम करता हूँ और सलमान रुशदी का भारत अथवा दुनिया के किसी भी कोने में स्वागत करता हूँ, क्योंकि कलम का जवाब कलम होता है, कलम का जवाब अगर तलवार हो जाये तब सत्ता में समझो कोई नादिर ही बैठा है भले ही उसका नाम इस्लाम हो या तूफ़ान...