सऊदी उप युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी नेतृत्व में ३४ इस्लामी देशों का महाज बनाने की घोषणा कर के सीरियाई संकट को एक और नया आयाम दे दिया है, सीरिया में रूस के सीधे हस्तक्षेप के बाद यह दूसरा महत्वपूर्ण सोपान है. बताया गया है कि इस फ़ौज का इस्तेमाल आइसिस जैसे संगठनों से लड़ने के लिए किया जायेगा जिसका मुख्यालय रियाद में होगा. इस फ़ौज में पाकिस्तान, तुर्की और मिस्र की महति भूमिका होगी. फिलहाल इस सतबेजडी फ़ौज का इस्तेमाल सीरिया-इराक में किया जायेगा, जहाँ फ़्रांस,अमेरिका,ब्रिटेन,रूस जैसी शक्तियां पहले से ही फिजाई हमलों में भारी शिरकत कर रही है, मसला जमीनी लडाई का उसे कौन करेगा? लिहाज़ा अमेरिका के खाड़ी मित्र देशों ने सऊदी नेतृत्व में यह जिम्मेदारी ली है. जाहिर है पश्चिमी देशों के सैनिकों के ताबूत अब उनके देशों में नहीं वरन इन्ही ३४ देशों में रवाना होंगे.
सबसे अहम् सवाल इस मुहाज के धार्मिक चरित्र का है जो मूलतः सुन्नी फौजों का मुहाज है जिसमे सीरिया, इराक और इरान को शामिल न करके दुनिया भर को यह संदेश दिया गया है कि सऊदी ने यमन और बहरीन में जो किया वही सीरिया में दोहराया जायेगा. इस मुहाज में लेबनान का नाम भी है लेकिन लेबनान के एक मंत्री ने इसका हिस्सा न बनने का सार्वजानिक बयान देकर अपने मुल्क की आन्तरिक राजनीति के अंतर्विरोधों को जगजाहिर कर दिया है.
सऊदी अरब, बशर अलअसद को सत्ता से हटने की पहली शर्त लगाता है जबकि उसकी फौजों ने ही आइसिस के खिलाफ अभी तक सबसे अधिक मोर्चाबंदी भी की और शहादतें भी दी. बशर अलअसद को हटाना ठीक वैसा ही होगा जैसे सद्दाम को इराक से हटा कर पूरे मुल्क को तबाह कर देना या गद्दाफी को हटाकर लीबिया को बर्बाद करना.
शिया-सुन्नी और खासकर सलफी इस्लाम की राजनीतिक मह्त्वकक्षाओं का मूल्यांकन मुस्लिम समाज को करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना इरान के सफविद शिया शासकों का. धार्मिक संकीर्णता ने मध्यपूर्व के समाज को जितना खोखला किया है, उसकी अनुपस्थिति में पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों को इस क्षेत्र में घुसपैठ करने की न मोहलत मिलती और न प्रश्रय मिलता . इन देशों के वैचारिक अंतर्द्वंद ही बाहरी शक्तियों को अपना खेल खेलने का माहौल भी देते हैं और अवसर भी.
इस बीच एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण खबर टूनिसिया से आयी जहाँ अरब और उत्तरी अफ्रीकी देशों की वाम पार्टिओं का एक महासंघ बना है, लुटेरे शासकों के दलबल अगर ध्रुवीकृत हो रहे हैं तो समाज को बदलने वाली शक्तियों में भी करवट बदलने के संकेत मिल रहे है. धार्मिक उन्माद और धर्म के राजकीय उपयोग के विरुद्ध धर्मनिरपेक्ष ताकतों का गोलबंद होना भी स्वभाविक ही है.
चित्र: गृहयुद्ध में बर्बाद सीरिया का होम्स शहर