Tuesday, March 27, 2012

और हम चुप क्यों हैं?

और हम चुप क्यों हैं?


(सावधान: कुछ दृश्य आपको विचलित कर सकते हैं)

कल से पडौसी मुल्क की तिजारती राजधानी में हालत-ए-खाना-ए-जंगी है, मार काट चल रही है, दुकानें, गाडियाँ, मकान फ़ूँके जा रहे हैं कराची में- मुसलमान मुसलमानों को मार रहे हैं, अब तक ८ के मरने की खबर है (पिछले साल ये आंकडा कोई १००० के करीब था)..लेकिन कोई खबर नहीं बनती, न चर्चा होती न कोई पोस्ट बनती...पाकिस्तानी सेना बलोचियों की नस्ल कुशी करे कोई हरकत नहीं होती...तालेबानी पठान, पाकिस्तानी फ़ौजियों और उनके सहायकों को लाईन में खडा कर के जानवरों की तरह मार दे, कोई खबर नहीं बनती..इस्लामी दहशतगर्द सूफ़ियों की कब्रें बमों से उडा दें- कोई कुछ नहीं बोलता?

और थोड़ा दूर चलें..इराक में शिया मुसलमानों के धार्मिक उत्सव के दौरान कोई खुद को बम से उडा ले, दर्जनों साथ में ले मरे..कोई परवाह नही करता? मुद्दतों से कुर्द आज़ादी के लिये लड़ रहे हैं- इरानी, इराकी और तुर्की फ़ौजें कभी भी बम बरसा दें.. पकड़ लें, फ़ांसियां दे दें, गोली मार दें...सब स्वीकार हो जैसे? मोरक्को के कब्ज़े से मुक्ति के लिये आधुनिक युग का सबसे बड़ा वेस्टर्न सहारा में पोलिसारियो का आंदोलन किस तरह देखते ही देखते इस्लामी राजा द्वारा समूल नष्ट किया जा रहा है...लेकिन हम चुप हैं, कोई पत्ता तक नहीं हिलता..न किसी खबर से और न ही यू.एन.ओ. में कोई प्रस्ताव आता है. इण्डोनेशियाई सरकार के वर्दीधारी दरिंदों ने ईस्ट टाईमोर पर २४ साल तक क्या कहर ढाया था..इस पर हम चुप थे...सऊदी हवाई हमले दक्षिणी यमन में फ़ूल नहीं, बम बरसातें हैं, उसमें पहाड़ियां नहीं टूटती...उसमें भी जीते जागते इंसान मरते हैं, सऊदी फ़ौजी बहरीन में बलवा शांत करने के लिये बिरयानी लेकर नहीं गये..जदीद हथियारों के साथ वहां गये हैं...असद सरकार सीरिया में अब तक ८००० लोगों की हत्यायें कर चुकी है, मुबारक ने और गद्दाफ़ी ने क्या किया आप जानते ही हैं..

बोको हराक जैसे इस्लामी संगठन इस्लाम के नाम पर नाईजीरिया में हत्या, दमन और वसूली का कारोबार चलाये हैं, अल शादाब सोमालिया में कितनी गैर इंसानी हरकतों में मुल्लव्विस हैं इस पर हम मुजरिमाना तरीके से खामोश हैं? इरानी जेलों में पडे कैदियों पर हो रहे तशद्दुत पर, इरान में जन आंदोलनों के दमन पर, जन-नेताओं की हत्याओं/फ़ांसियों पर हम चुप हैं..क्यों?

इस्राईल के बम फ़लस्तीनियों पर जब पडें, अमरीकियों की तोपें जब अफ़गानिस्तान, इराक में गरजें..भारतीय फ़ौजियों की गोली जब कश्मीर में चलें सिर्फ़ तभी इंसान नहीं मरते. मुसलमान हकुमतों के गुनाहों पर चुप्पी कब तक साधेंगे? इस्लामी औपनिवेशिक प्रवृतियों के खिलाफ़ बोलना अपराध नहीं है...इंसाफ़ और हक की आवाज़ सेलेक्टिव नहीं होती. मज़हबी किताब फ़ाड़ने से पूरा अफ़गानिस्तान सड़क पर था, अमेरिकी सिपाही ने जब अफ़गान गांव में घुस कर १६ नागरिक मार डाले थे..तब इतना बडा मसला बना कि ओबामा ने माफ़ी मांगी...ये मुसलमान हकुमतें कभी यमन में, कभी बहरीन, कभी कुर्दिस्तान में कभी बलोचिस्तान में अनगिनत लोगों की हत्यायें हर रोज़ कर रही है...बलोच आज़ादी के लडाकुओं को मार कर उनके बदन पर चाकू से "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" खोद कर हेलीकोप्टर से नीचे पहाडियों पर, जगंलों में उनके शव फ़ेंक दिये जाते हैं...और हम क्यों चुप हैं?






चित्र सौजन्य: गूगल