Thursday, April 9, 2015

सभ्यताहीनता का सऊदी दंश


यमन पर सऊदी हमला इस खित्ते के सबसे पुरानी सभ्यताओं को कुचलने का एक घृणित और कुत्सित प्रयास है, यमन का इतिहास इन बद्दुओं के सऊदी अरब से पुराना और महिमापूर्ण है. यमन में एक बाँध हुआ करता था जिसका नाम था  मारिब. मारिब के बाँध का  इतिहास में वही महत्त्व है जो बाद में मक्का की हुआ. मक्का में भरने वाले सालाना मेले जिन्हें व्यापारिक गतिविधी के रूप में देखा जाना चाहिए उसमे तब उछाल आ गया जब मारिब बाँध टूट गया. (इसके टूटने के बारे में कई मत है, कुछ का मानना है युद्ध में तोडा गया, इथियोपिया के राजा अब्रहा द्वारा, कुछ कहते हैं प्राकृतिक विपदा के कारण) बारहाल जो मेला और व्यापारिक गतिविधियाँ (सिल्क रूट) मारिब की वजह से हुआ करती थी वह केंद्र मक्का की तरफ शिफ्ट हो गया. इस घटना के ५०-६० साल बाद इस्लामी आन्दोलन ने सऊदी में जब करवट ली तब हज के नाम से इसका पेटेंट सऊदी के पास ही चला गया. मारिब का बाँध अगर न टूटता तो शायद इस्लाम न होता, ऐसा मेरा मानना है, अगर ऐसा कुछ होता भी  तो यमन में होता, तब उसका स्वरूप कबायली नहीं थोडा रिफाइंड सामंती होता, जो वह खलीफाओं की तीस बरस की हकुमत के बाद हुआ.

फिलहाल विगत दो सप्ताहों से सऊदी नेतृत्व में दस मुल्कों की  फौजे अपनी तोपों और हवाई हमलों से जो बारूदी गुलदस्ते यमनी आवाम को दे रही है उसमे ५५० से अधिक लोग मारे जा चुके है जिनमे १०० के करीब बच्चे और महिलायें हैं. लाखो बेघर हुए है, इस क्षेत्र का यह सबसे निर्धन देश है जिसकी आबादी २४ मिलियन है. इतिहास अपनी वेदनाएँ  साथ लिए चलता है, वह पीछा नहीं छोड़ता. सऊदी के पास आज बेशुमार ताकत लेकिन उसके पास उसका अतीत नहीं है, उसके पास अपनी सभ्यता का कोई इतिहास नहीं, इसीलिए जो आइसिस ने इराक में पुरातन सभ्यता को मिटाने काम किया (तालेबान में बामियान काण्ड किया) कमोबेश वही काम सऊदी कर रहा है. यमन और इरान इस खित्ते की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक हैं और दोनों पर सऊदी का प्रकोप है ..विडंबना यह है कि दोनों मुल्क इस्लाम के नाम पर ही सऊदी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्षरत है और सऊदी भी इस्लाम के एक संस्करण को ही आगे बढ़ा रहा है. काश हौथीस कोई मानव मुक्ति की लडाई लड़ रहे होते? 
Google Photo: Dam of Marib