Friday, March 15, 2013

जमाती फजलुर्रहमान: मानवजाति पर नाजायज़ क़र्ज़

इनसे मिलिए ये हैं पाकिस्तान के मज़हबी नेता मौलाना फ़ज़लुर्रहमान. इनकी पार्टी जमात को एक दहाई सीटे नहीं मिलती, ये खुद कितनी बार चुनाव हारे इसका अंदाजा शायद इन्हें भी नहीं होगा. पिछले २ माह में क्वेटा में दो और एक कराची में धमाके हुए जिनमे सैकड़ो शहरी मारे गए. लेकिन मजाल है कि ये कुछ बोले ? मज़हबी दरिंदो ने खुदकश हमलो में हजारो बेगुनाहों को मौत की नीद सुला दिया- मजाल है कि ये मौलाना कुछ करे उनके खिलाफ..पाकिस्तान रोज़ एक फिट गर्त में गिर रहा है, मेहनत कश आवाम की दिक्कते हर रोज़ एक पहाड़ की तरह उनके सामने होती है लेकिन मौलान ने कभी बुनियादी मसलो पर लड़ाई शुरू करने की जुर्रत नहीं की. इनका नाम मौलाना 'डीज़ल' भी है जो इनकी हराम खोरी का अपने आप में जीता जागता दस्तावेज है, इनकी पार्टी को जमाते हरामी के नाम से भी कुछ लोग जानते है. 
हां, इन्हें दिल्ली में दी गयी अफ़ज़ल गुरु की फांसी याद आ गयी, पाकिस्तान की संसद में भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाने वाले यही वह महान शख्सियत है जिसके कर्ज के नीचे मुसलमान और मानव जाति दबी हुई है. इन्हें शर्म नहीं आती, कब तक जज्बाती सियासत करके जनता का गला घोटते रहेंगे? इन सभी मजहबी बहरूपियो का चरित्र एक ही होता है, असली मुद्दों से जनता को दूर रखा कर नकली मुद्दों की तरफ जनता का ध्यान बाँट देना.
गौर करने वाली बात है उधर के दाहिने बाजू सियासत का जवाब इधर के दाहिने बाजू संघियों ने फ़ौरन दिया, पाकिस्तान के 'निंदा प्रस्ताव' की 'निंदा' भारतीय संसद ने भाजपा द्वारा लाये एक प्रस्ताव में कर दी.....धन्य हो लोकतंत्र जो कैसे कैसे जीवों की जीवन दे देता है? खासकर तीसरी दुनिया के देशो में.

Saturday, March 9, 2013

इस्लामी गुंडों का कानून है ईश निंदा कानून





ये इक्कसवी सदी की कितनी खूबसूरत तस्वीरे है? एक लफंगे ने कहा कि 'उसने हुज़ूर की शान में गुस्ताखी की है', सारे लफंगों के होश उड़ गए. लफंगों का हुजूम 'नारा -ए-तकबीर-अल्लाहु अकबर' लगाता हुआ भंगियो (पाकिस्तान में सफाई कर्मचारी इसाई है; ६५ साल में भी ये मुसलमान क्यों नहीं हुए यहाँ अलग बहस का मौजू है) के मुहल्ले, जोसेफ कालोनी लाहौर पाकिस्तान में उस कथित अपराधी बब्बी को ढूंढने निकल पड़ा, वो नहीं मिला तो उसकी जात-बिरादरी-धर्म  के लोगों के  कोई १५० घरो को जला दिया. इन  सुहानी तस्वीरो में, तबाही पर ताडंव नृत्य करते 'मज़हब के रखवालो' को साफ़-साफ़ पहचाना जा सकता है. 
राजनीतिक इस्लाम अगर एक फासीवादी विचारधारा है तो 'ईश निंदा' उसका प्रमुख  अस्त्र है. ऐसे बर्बर कानून की जरुरत उन बर्बर ताकतों को होती है जिन्हें ये नज़ारे देखने में अच्छे लगते है और जिन्हें अपनी इन्ही शैतानी कार्यवाहियों को हर रोज़ अंजाम देने की इच्छा रहती है. पाकिस्तान में ये अनासिर अब तकरीबन हर घर में मौजूद है. भारत में भी अब इनकी तादाद अच्छी खासी बढ़ रही है. एक कथित बहुजन स्वामी नेता की मूढ़ता की परिकाष्ठा उसके बैनर पर 'इस्लामवाद जिंदाबाद' के नारे तक मे देखी जा सकती है.
ये आग ...मेरे और आपके दरवाज़े पर कल पहुँच जाए तो ताज्जुब न कीजियेगा..सऊदी अरब का पैसा मस्जिदों-मदरसों  के जरिये सड़क पर आतंक के रूप में एक 'सलफी' सच्चाई को बयान कर रहा है.