Saturday, July 27, 2013

मूर्खो का विराम: धर्म



दिमाग से ठप्प और अक्ल से खारिज एक तबका जो अपनी किताब को दुनिया की अव्वल तरीन किताब की गप्प हांकते नहीं थकता और पिछले १४०० सालों से इसे दुनिया भर के इल्म की किताब की ढींगे मारता-मरता है. जब भी कोई वैज्ञानिक आविष्कार होता है तो सबसे पहले हमें बताता है कि यह उसकी किताब में पहले से ही मौजूद था. इन बेशर्मो को क्या यह बताने की जरुरत है कि मानवजाति अभी किन-किन समस्याओं से जूझ रही है? सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक मसलों को चलिए अभी एक तरफ रखते है, चिकित्सा के क्षेत्र में ही ऐसी कई बीमारियाँ मौजूद हैं जिनसे करोडो लोग मर रहे है. मिसाल के लिए कैंसर, मधुमेह, इन्फुलैंज़ा, इबोला वायरस, दमा, एच.आई.वी वायरस, जैकब,लुपस, सर्दी ऐसी बीमारियाँ है जिनका कोई इलाज नहीं. क्या ये सर्वश्रेष्ठवादी, सम्पूर्णवादी, पूर्ण ज्ञान वादी इनमे से किसी बीमारी का हल बता कर मानवजाति पर कोई उपकार करेंगे? विज्ञान की और भी चुनौतियाँ है जैसे प्रकाश की गति से चलने वाला कोई वाहन बनाना जिसके द्वारा ब्रह्माण्ड में बिखरे रहस्यों की खोज हो सके. मौजूदा समय में ऐसी कोई मिसाल नहीं कि किसी वैज्ञानिक ने किसी धर्म ग्रन्थ को पढ़कर कोई आविष्कार कर लिया हो. ऍम.आई.टी जैसे दुनिया के बड़े अध्ययन के इदारे हर वर्ष अरबो डालर अनुसंधान पर खर्च करते है, वे वेबकूफ है कि आपकी किताब नहीं पढ़ते और आपने कुछ भी नहीं किया फिर भी आप अव्वल अकलमंद? ये जोक चाय, नाई, हलवाईयों  की दुकानों के लिए उपयुक्त है. तुम्हारी किताब में ही अगर सब कुछ होता तो इसे पढ़ कर कोई डाक्टर बनता कोई इंजीनियर और कोई वैज्ञानिक ....दुर्भाग्य से  मदरसों का पढ़ा लिखा तालिबे इल्म  सिवाय सामुदायिक बोझ के और कुछ नहीं बनता.   

जो इस प्रपंच में फंस चुके उनका बाहर निकलना संभव नहीं लेकिन जो अभी इसमें घुसने वाले है यह प्रश्न  उनके लिए है. कृपा करके बुद्धि का उपयोग करे और प्रश्न करना सीखे. प्रश्न करने से ही दुनिया के तमाम शोघ हुए है. विश्वास करना अपंगता स्वीकार करना है, इसी लिए धर्म सबसे पहले तुम्हे विश्वास करना सिखाता है. अपाहिजों की भीड़ में शामिल होने से बेहतर है अपनी जगह पर अपने पैरो पर खडा  रहना.    

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